माता दुर्गे के सातवें स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता है। जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही पता चलता है कि इनका स्वरूप भयानक है। सर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में बिजली की तरह चमकने वाली माल है। कल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है। इस देवी के तीन नेत्र हैं। यह तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड की तरह गोल है। उनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है।
इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन यह हमेशा शुभ फल देने वाली माता है। इसलिए इन्हें शुभकारी कहलाई। यह ग्रह बढ़ाओ को भी दूर करती है। उनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।
देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान।
मैं धनुषवरी देवी की ध्यान करता हूं। उनके श्री अंगों की आभा पदार्थ कल के सूर्य के समान है और मस्तक पर चंद्रमा का मुकुट है। वह उभरे हुए स्थान और तीन नेत्रों से युक्त हैं। उनके मुख पर मुस्कान की छत छाई रहती है और हाथों में वृद्धि अंकुश से पास एवं अभय मुद्रा शोभा पाते हैं।
दुर्गा पूजा पाठ विधि तथा सामग्री।
भगवती दुर्गा के साधन भक्त स्नान आदि से शुद्ध होकर शुद्ध वस्त्र धारण कर पूजा स्थल को सजाते हैं। मंदिर में भी श्री दुर्गा की मूर्ति स्थापित की जाती है। मूर्ति के दाएं और कलश की स्थापना की जाती है तथा कलश के सम्मुख मिट्टी और बालू रेत मिलकर जौ बन चाहिए। मंडप के पूर्व कौन में दीपक की स्थापना की जाती है। पूजन में सबसे पहले गणेश जी की पूजा करके फिर सभी देवी देवताओं की पूजा की जाती है तत्व पश्चात जगदंबा का पूजन और पाठ की जाती है।
सप्तशती का पाठ ना तो जल्दी-जल्दी करना चाहिए और ना बहुत धीरे-धीरे। पाठ करते समय मन में माता की मूर्ति बसाए।
पूजा सामग्री,
गंगाजल पंचामृत दूध दही घी शक्कर, रेशमी वस्त्र उपवास्त्र नारियल चंदन रोली कलावा अक्षत पुष्प तथा पुष्प माला एवं जयमाला। धूप दीपक ऋतुपल पान सुपारी लौंग इलाइची आसान चौकी, पूजन पत्र आरती कलश इत्यादि होनी चाहिए।
माता की प्रार्थना,
हे करुणामई जगदंबा स्नेहा में एवं आनंद देने वाली मां आपकी सदा जय हो। हे जगदंबे पंख हैं पक्षी और भूख से बिलबिलाते बच्चे जिस प्रकार अपनी मां की प्रतीक्षा करते हैं उसी प्रकार मैं भी आपकी दया की प्रतीक्षा कर रहा हूं। है अमृत में मां आप शीघ्र अति शीघ्र मुझ पर कृपा करें। मुझे ऐसी बुद्धि प्रदान करिए जिससे मैं आपका हर समय हर सांस में आपका नाम जपता रहूं।