वह प्रेरणा की फुहार से बालक रूपी मां कोशिश कर उनकी नींव को मजबूत करता है तथा उनके सर्वज्जिक विकास के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। किताबी ज्ञान के साथ है नैतिक मूल्यों और संस्कार रूपी शिक्षा के माध्यम से एक गुरु ही शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है।
प्राचीन से है गुरु शिष्य का परंपरा।
गुरु शिष्य परंपरा भारत में प्राचीन समय से ही चली आ रही है। गुरुओं की महिमा का वृतांत ग्रंथों में भी मिलता है। जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता क्योंकि हुए ही हमें किसी खूबसूरत दुनिया में लाते हैं।
उनका ऋण हम किसी भी रूप में उतर नहीं सकते लेकिन जिस समाज में रहना है उसके योग्य हमें केवल शिक्षक ही बनाते हैं। यद्यपि परिवार को बच्चों के प्रारंभिक विद्यालय का दर्जा दिया जाता है लेकिन जीने का असली साली का उसे शिक्षक ही सिखाता है। समाज के शिल्पकार कहे जाने वाले शिक्षक का महत्व यहीं समाप्त नहीं होता क्योंकि वह न केवल विद्यार्थी को सही मार्ग पर चलने की प्रेरित करते हैं बल्कि उसके सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के हाथों ही रखी जाते हैं।
चरित्र निर्माण में अहम भूमिका।
शिक्षक अपने शिष्य के जीवन के साथ-साथ उसके चरित्र निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करना बहुत ही विशाल और कठिन कार्य है। व्यक्ति को शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ उसके चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करना उसी प्रकार का कार्य है जैसे कोई कुम्हार मिट्टी से बर्तन बनाने का कार्य करता है। इसी प्रकार शिक्षक अपने शिष्य को शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ उसके व्यक्तित्व का निर्माण भी करते हैं। इसका तात्पर्य है कि शिक्षक उसे कुमार की तरह है जो अपने छात्र रूपी घड़े की कमियों को दूर करने के लिए भीतर से हाथ का सहारा देकर बाहर से थापी से चोट मारता है।
ठीक इसी तरह कभी-कभी शिक्षक के छात्रों पर क्रोध ही करते हैं लेकिन उनका उद्देश्य हमेशा उनका वह सर मार्गदर्शन करना ही होता है।
यही वजह है कि शिक्षक और शिक्षक के दिवस का महत्व भारतीय संस्कृति में सही ज्यादा है।
इसलिए 5 सितंबर को मनाते हैं शिक्षक दिवस।
भारत में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है वहीं अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस का आयोजन 1994 से 5 अक्टूबर को होता है जिसे यूनेस्को ने तय किया था।
भारत में शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा साल 1962 में शुरू हुई जब देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति भारत रत्न डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिवस से मनाने के लिए उनके छात्रों ने उनसे स्वीकृति लेनी चाहिए।
तब डॉक्टर राधाकृष्णन ने कहा था कि मेरा जन्मदिन मनाने की वजह है इस दिन को शिक्षकों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किए गए योगदान और समर्पण को सम्मानित करते हुए मने तो मुझे खुशी होगी। उन्होंने करीब 40 साल तक शिक्षक के रूप में कार्य किया था।
डॉ राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तनी नामक एक गांव में हुआ। उनका बचपन बेहद गरीबी में बिता लेकिन वह पढ़ाई में पीछे नहीं रहे और पिलासी में मां के बाद 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में फिलासफी के प्रोफेसर बने।
कई विश्वविद्यालय में पढ़ने के साथ ही कोलंबो एवं लंदन यूनिवर्सिटी नवी उनको मानक उपाधियों से सम्मानित किया।
1949 से 1952 तक वह मास्को में भारत के राजदूत रहे। इसके बाद 1956 में देश के दूसरे राष्ट्रपति बनने तक देश के पहले उपराष्ट्रपति रहे।
डॉ राधाकृष्णनकहा करते थे की पुस्तक हुए साधन है जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के मध्य पुल बनाने का कार्य कर सकते हैं।
आज हमारा देश है तेजी से सफलता के मार्ग पर अग्रसर है जिसका श्री हमारे शिक्षकों को जाता है। आज शिक्षक दिवस है इसलिए सभी विद्यार्थियों को शुभकामनाएं।