लुई पाश्चर की जीवन परिचय।
लुई पाश्चर का जन्म में 27 दिसंबर 1822 को फ्रांस के डोले में श्रमिक वर्ग के एक परिवार में हुआ था। उनके पिता चमरे के व्यापारी थे। पिता चाहते थे कि उनका बेटा पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बने। वह उसकी शिक्षा के लिए कर्ज का बोझ उठाने को भी तैयार थे। अपने पिता के काम में मदद करते हुए ली ने अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए एक स्कूल में दाखिला लिया लेकिन शिक्षकों द्वारा पढ़ाया जाने वाला ज्ञान उनकी समझ से पड़े था। ली का बचपन बहुत परेशानी भरा था लेकिन इन सब के बावजूद वह एक दयालु व्यक्ति थे।
लुई पाश्चर बचपन में एक मंदबुद्धि बालक थे।
बचपन में जब वह अपने गांव में रहते थे तो उन्होंने अपने गांव के आठ लोगों को एक पागल कुत्ते के काटने से मरते देखा। ली मरे हुए तो वह अतीत की घटनाओं को याद करके बहुत बेचैन रहते थे।
उन्हें मंदबुद्धि पागल और बुद्धू कहकर चढ़ाया जाता था। अपने शिक्षकों और साथियों की बातों से निराश होकर उन्होंने स्कूल छोड़ दिया लेकिन कुछ ऐसा करने के बारे में सोचा कि दुनिया उन्हें बुद्धू के रूप में नहीं बल्कि एक बुद्धिमान के रूप में जाने।
अपने पिता के आगरा पर वह शिक्षा के लिए पेरिस चले गए और वसा को के एक कॉलेज में पढ़ने लगे। रसायन विज्ञान में उनकी विशेष रूचि थी। वह रसायन शास्त्री डॉक्टर डूमा से विशेष रूप से प्रभावित थे। कॉलेज से स्नातक होने के बाद पाश्चर ने 26 साल की उम्र में रसायन विज्ञान की बजाय भौतिकी के पढ़ना शुरू किया।शिक्षा और जीवन में बढ़ाओ को पार करते हुए वह विज्ञान विभाग के अध्यक्ष बने। इस पद को संभालने के बाद उन्होंने शोध कार्य शुरू किया।
लुई पाश्चर की उपलब्धियां।
खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखने के लिए किए प्रयोग के अलावा ली को चिकित्सा जगत में उनकी कई महान उपलब्धियां के लिए भी खूब जाना जाता है। उन्होंने अपने एक साथी रुक से की मदद से पागल कुत्तों पर रिसर्च कर एक ऐसी वैक्सीन विकसित की जो पागल कुत्ते से काटने पर होने वाली बीमारी रैबीज से मरीज को बचा पाने में क्रांतिकारी साबित हुई। आपको बता दूं कि रेबीज एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है पागलपन।
रिसर्च में ली ने पाया कि पागल कुत्तों के मुंह से निकलने वाला झगड़ा जानलेवा होता है जो मस्तिष्क पर बुरा असर करता है। ली ने इस जाग का परीक्षण कुत्तों पर ही किया और उनमें इस रोग के प्रति एंटीबॉडी विकसित होने का अध्ययन कर एक टीका तैयार किया जिसका पहला प्रयोग भी उन्होंने कुत्तों पर ही किया जिसके परिणाम सकारात्मक आए।
ली की बनाई रेबीज एंटी वैक्सीन का प्रयोग न केवल कुत्तों के काटने पर बल्कि बिल्ली नेवला बंदर चमगादड़ भेड़िया इत्यादि जानवरों के काटने पर भी असर कारक रहा।
अब तैयारी थी इस वैक्सीन को इंसानों पर प्रयोग की। एक दिन एक महिला अपने बच्चे जिसे 2 दिन पहले पागल कुत्ते ने काटा था और उसकी हालत खराब हो रही थी। उन्होंने अपने बच्चों को इलाज के लिए लुई के पास लाई। उन्होंने जब तैयार रेबीज एंटी वैक्सीन उसे दी तो परिणाम आश्चर्जनक थे। उसे बच्चों को बचा लिया गया। लुई कि इस महान उपलब्धि की हर जगह प्रशंसा हुई। इसके लिए उन्हें फ्रांस सरकार द्वारा सम्मानित किया गया और उनके नाम से पश्चात संस्थान की स्थापना की गई। इतना सब होने पर भी लुई में कोई परिवर्तन नहीं आया वह जीवन भर बीमारियों और उनके कासन का समाधान ढूंढने में लग रह।
पश्चरीकरण की खोज।
उन्होंने दूध को अधिक समय तक सेवन योग्य बनाए रखने के लिए दूध को पास स्वीकृत करने का तरीका भी तलाश और मुर्गियों में हैजा की रोकथाम के लिए टीका बनाया।
या तो बस एक शुरुआत थी इसके बाद उन्होंने गए और भेद में होने वाला एंड गेट से नामक बीमारी के लिए भी टीका बनाया।
लुई पाश्चर की मृत्यु।
28 सितंबर 1895 को 72 वर्ष की आयु में उनकी नींद में ही मृत्यु हो गई।
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