इस दिवस को मच्छरों से होने वाली बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है।
यूएसए सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन ने मच्छरों को दुनिया का सबसे घातक जानवर कहां है। केवल2.5 मिलीग्राम वजनी किट के लिए यह दवा कोई अतिशक्ति नहीं क्योंकि मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों के कारण हर साल दुनिया भर में 7 लाख से अधिक मौतें होती है।
आज लोग मच्छरों के बचाव के लिए कई तरह के उपाय अपनाते हैं, क्योंकि सब जानते हैं कि एक छोटा सा मच्छर इंसान का जीवन खत्म कर सकता है, लेकिन एक समय था जब किसी को इस बारे में पता नहीं था।
मलेरिया जैसी बीमारी लोगों को मौत की नींद सुला रही थी लेकिन किसी को पता नहीं था कि इसकी असल वजह क्या है? 20 अगस्त 1897 के दिन एक के ब्रिटिश डॉक्टर रोनाल्डो संस ने यह साबित किया कि मलेरिया मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने से होता है। इसी हम खोज को याद में विश्व मच्छर दिवस मनाने की शुरुआत साल 1930 में की गई थी।
डॉक्टर रोनाल्ड संस ने कि इसकी खोज।
रोनाल्डो संत का जन्म 23 मई 1857 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कुमाऊं क्षेत्र में हुआ था। उनके पिता अंग्रेज फौज में अफसर थे। युवा संघ से लेखक और कवि बनना चाहते थे लेकिन पिता के कहने पर ना चाहते हुए भी लंदन के सेंट बरठोलिन मेडिकल स्कूल में दाखिला हो गई। चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई पूरी करने के बाद सनस 880 में भारत लौटे।
2894 में जब प्रसिद्ध दे इसका टच डॉक्टर पैट्रिक के मेंशन ने उन्हें कहा कि मुझे लगता है कि शायद मलेरिया मच्छर से फैलता है, तो उन्होंने इस खोज के लिए दिन-रात एक कर दिया।
यह काम कितना चुनौतीपूर्ण था इसका पता रामस के शब्दों से लगता है। मैं दिन-रात मच्छरों के पीछे ही पड़ गया। हम एक-एक मच्छर के पीछे बोतल लेकर दौड़ते फिर मलेरिया के रोगियों को मच्छरदानी में बिठाकर उन मच्छरों को दावत देते। एक मच्छर को अपना खून चूसने के लिए मरीज को एक आना मिलता। मुझे सिकंदराबाद के अस्पताल के हुए दिन सदैव याद रहेंगे, मच्छर को काटकर खोलने और उसके पेट के भीतर ताक झांक,
एक बार मैं भी मलेरिया का शिकार हो गया। सूक्ष्मदर्शी पर झुककर बारीकियों देखते-देखते शाम तक मेरी आंखें जैसे धुंधला सी जाती थीं। गर्दन अलग अकड़ जाती। इतनी गर्मी थी फिर भी पंखा नहीं चला सकते थे क्योंकि हवा से मच्छर उड़ जाते हैं। सूक्ष्मदर्शी के जरिए यह सब करने के बावजूद कुछ हाथ नहीं लगा।
1 दिन किस्मत मेहरबान हो गई। हमने कुछ मच्छर पड़े जो देखने में थोड़ी अलग थे। इनका रंग भूरा था और पंख छितेदार थे। उनमें से एक मादा मच्छर के पेट में देखते-देखते कुछ काला सा दिखा। पता चला कि वह छोटे-छोटे जीवाणु वैसे ही थे जैसे हमने मलेरिया के मरीजों के खून में देखे थे। उसी से हमें यह साबित मिल पाया कि मच्छर यानी मादा एनल फिलिप्स मच्छर से ही मलेरिया फैलता है।
इस खोज के लिए उन्हें 1902 में चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
मच्छरों के बारे में कुछ रोचक तथ्य।
1, नर मच्छर कभी नहीं कटते केवल मादा मच्छर काटते हैं। खून में मौजूद प्रोटीन उनके एंड के प्रजनन में मदद करता है। इसी जरूरत को हुए इंसानों और जानवरों को काटकर पूरा करते हैं। वही नर मच्छर इंसानों या जानवरों को काटते नहीं हैं बल्कि हुए फूलों के पराग या अन्य शर्करा सिरोक्को खाकर अपना पेट भरते हैं।
2, मच्छरों के काटने का भी एक निश्चित समय होता है। मलेरिया फैलाने वाले मादा एनाफिलीज मच्छर सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच ही काटते हैं, तो वही डेंगू फैलाने वाले एडीजी मच्छर सूर्या से पहले या शाम को काटते हैं। एन्सेफेलाइटिस से फैलाने वाले टयूलिप्स मच्छर बाकी दोनों से अलग होते हैं। यह मच्छर रात भर सक्रिय रहते हैं और रात के समय घर के अंदर और बाहर कहीं भी काट सकते हैं।
3, एक मच्छर की उम्र आमतौर पर 2 महीने से कम होती है, हालाकी नर मच्छर औसतन 6 से 7 दिनों तक जबकि मादा मच्छर 6 से 8 हफ्ते तक जिंदा रहती है। मादा मच्छर एक वक्त में करीब 300 अंडे देती है।
4, मच्छरों की 3500 से ज्यादा प्रजातियां हैं।
5, मच्छरों के दांत नहीं होते हुए अपने मुंह के नुकीले और लंबे ढंग से काटते हैं। जिसमें 47 तेज धार उभर होते हैं,
5, मच्छर अपने वजन का लगभग 3 गुना खून पी सकते हैं। वह एक बार में 0.001 से 0.1 मिलीलीटर तक खून चूस सकते हैं।
मच्छर भगाने के उपाय।
मच्छरों को भगाने का कोई उचित उपाय नहीं है क्योंकि वह लौट आते हैं। इसलिए ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे वह आए ही ना। ऐसा तभी संभव है जब आप मच्छरों के पनपना वाले माहौल को ही दूर करेंगे। कोई हमेशा गंदगी में पनपते हैं इसलिए कभी घर के आस-पास गंदगी ना फेलने दे। कचरा जमा ना होने दें और कचरे के डिब्बे को हमेशा साफ रखें। घर के आसपास बनी नाली को हमेशा साफ करवाएं और गर्मियों के दिनों में प्रयोग होने वाले कूलर के पानी को बदलते रहे। इसके अलावा घर के किसी भी बर्तन या गमले में पानी जमा न होने दें।