लगता ठंडाई और जलेबी का भोग,
ब्रज की अनूठी होली की मस्ती में केवल बृजवासी और बाहर से आने वाले श्रद्धालु ही नहीं झूमते आराध्य को भी होली में अलग से भोग लगाया जाता है। ठाकुर जी की भोग सेवा में ठंडाई होती है तो गरमा गरम जलेबी भी परोसी जाती है। दरअसल बसंत पंचमी से ब्रज में होली का एक लकड़ी का टुकड़ा जो होली शुरू होने का संकेत देता है। एक लकड़ी का टुकड़ा घर आ जाता है इसी के साथ ठाकुर जी को गुलाल लगाया जाता है और श्रद्धालुओं में प्रसाद के रूप में गुलाल उड़ाया जाता है। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि होली खेलने के दौरान ठाकुर जी के मुंह और नाक के रास्ते स्वसन नालियों और गले में रंग जम जाता है। गरम जलेबी का रस उस रंग को उतारकर नसों को साफ कर देता है।
दूर होता है सुबह का सूनापन,
ब्रज वासियों की सुबह कचोरी और बेधमि के साथ होती है मथुरा वृंदावन हो गोवर्धन हो या फिर बरसाना, अगर कचोरी और बेड़मी नहीं मिली तो मानो सुबह सुनी है। गरमा गरम कचोरी और विडमी के साथ आलू का झोल ऐसा की स्वाद जीवन भर नहीं भूलता। आलू का झोल ऐसे ही तैयार नहीं होता। डिजिटल जोन बनाने के लिए कम से कम ढाई घंटे का समय लगता है। धनिया अदरक मिर्च और पालक की ग्रेवी बनाने के साथ ही लॉन्ग काली मिर्च के अलावा गर्म मसाले डाले जाते हैं। झूल इतना गर्म होता है खाने में उतना ही स्वादिष्ट लगता है। ठंड में भी जोर खाते समय पसीना निकल आता है।
भंग की तरंग और राधे की जय कारे,
होली बिना भंग की तरंग के हो ऐसा तो संभव ही नहीं है। सुबह यमुना मैया के घाटी पर जयकारे गूंजते हैं। दोपहर में पुराने शहर की बगीचों में भांग की घुटाई होती है। मेहनत से ठंडाई तैयार होती है और जयकारे के बीच ठंडाई तन-मन को झंकृत करती है। वैसे तो ब्रज में चतुर्वेदी समाज में लगभग रोज ही ठंडाई का सेवन किया जाता है लेकिन होली में इसकी मस्ती कई गुना बढ़ जाते हैं। दरअसल होली में ठंडाई का चलन ब्रज में सबसे अधिक है। होली के दिन सुबह से ही यहां के घरों और बगीचों में ठंडाई बनने लगती है। फिर भंग की तरंग में शुरू होता है फाग गायन वगैरा।
गुजिया बिना स्वाद अधूरा,
होली पर गुजिया बनाना वहां की परंपरा का एक हिस्सा है।ब्रज में भी होली पर गुजिया के बिना खानपान की बात भला कैसे पूरी हो सकती है। ठाकुर जी को गुजिया का भोग लगता है तो घर-घर गुजिया बनती है।
कढ़ाई वाले दूध की बात निराली,
हां बच्चों की गर्मी ने दस्तक दे दी है तो लस्सी का सेवन भी शुरू हो गया है। वृंदावन की कुंज गलियों हूं या फिर मथुरा यहां की लस्सी का स्वाद लाजवाब है। सुबह से ही लस्सी की दुकानों पर बिक्री शुरू हो जाती है। शाम होते होते कराही के दूध के लिए दुकानों पर भीड़ जुटती है। कराई के दूध का भी यहां अपना स्वाद है।