भगवती दुर्गा के साहस से भक्त न समाना भी से शुद्ध होकर शुभ दिवस धाम कर पूजा स्थल के सजाते हैं। मंदिर में दुर्गा की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। मूर्ति के दाएं और कलश की स्थापना करनी चाहिए तथा कलर्स के सम्मुख मिट्टी व बालू रेत मिलाकर जौ बोने चाहिए। मंडप के पूर्व कौन में दीपक की स्थापना करनी चाहिए। पूजन में सबसे पहले गणेश जी की पूजा करके फिर सभी देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात जगदंबा का पूजन पाठ करनी चाहिए।
सप्तशती का पाठ ना तो जल्दी जल्दी करना चाहिए और ना बहुत धीरे धीरे। पाठ करते समय मन में माता की मूर्ति बसाए।
मां चंद्रघंटा, मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रों में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन आराधना किया जाता है। इस दिन साधक का मन मणिपूर चक्र में प्रविष्ट होता है। देवी का यह स्वरूप परम शांति दायक और कल्याणकारी है। मां चंद्रघंटा की उपासना करने से भय का नाश हो जाता है और साहस की प्राप्ति होती है। शत्रुओं का नाश करने के लिए मां का आशीर्वाद बहुत जरूरी है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है। इनके शरीर का रंग सोने के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं, इनका वाहन सिंह है। इनकी उपासना से हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
मां चंद्रघंटा की कथा, जगदंबा के 3 अंगों की कांति उदय काल के शास्त्र सूर्य के समान है। वह लाल रंग की रेशमी साड़ी पहने हुए हैं। उनके गले में मुंडमाला शोभा पा रही है। दोनों स्थानों पर रक्त चंदन का लेप लगा है। हुए अपने कर कमलों में जय पालिका विद्या और अभय तथा वर नामक मुद्राएं धारण किए हुए हैं। तीनों नेताओं से सुशोभित मुखारविंद की बड़ी शोभा हो रही है। उनके मस्तक पर चंद्रमा के साथ ही रत्न में मुकुट बंधा है तथा हुए कमल के आसन पर विराजमान है। ऐसी देवी को मैं भक्ति पूर्वक प्रणाम करता हूं। देचू की सेना को इस प्रकार तहस-नहस होते देखे महादेव के सेनापति शिक्षण क्रोध में भरकर अंबिका देवी से युद्ध करने के लिए आगे बढ़ता है। वह असुर रणभूमि में देवी के ऊपर इस प्रकार बाणों की वर्षा करने लगा जैसे बादल मेरु गिरी के शिखर पर पानी की धार बरसा रहा हो। तब देवी ने अपने बाणों से उनके बांध समूह को अनायास ही काट कर उसके गुरु और सारथ को भी मार डाला। साथ ही उसके धनुष तथा अत्यंत ऊंची ध्वजा को भी तत्काल काट गिराया। धनुष कट जाने पर उसके अंगों को अपने बाणों से बेध डाला। धनुष रथ घोड़े और साक्षी के नष्ट हो जाने पर वह असुर ढाल और तलवार लेकर देवी की ओर दौड़ा। उसने तीखी धार वाली तलवार से सिंह के मस्तक पर चोट करके देवी की बाई भुजा में बड़े वेग से प्रहार किया।
देवी की बांह पर पहुंचते हैं वह तलवार टूट गई फिर तो पुरुष से लाल आंखें करके उस राक्षस ने शूल हाथ में लिया। और महान व्यक्ति ने भगवती भद्रकाली के ऊपर चलाया। वह धूल आकाश से गिरते हुए सूर्य मंडल की भांति अपने तेज से प्रज्वलित हो उठा।
उसे शूल को अपनी ओर आते देख देवी ने भी शूल का प्रहार किया। उसने राक्षस के शूल के सैकड़ों टुकड़े हो गए। साथ ही महादात्य चिक्षुर की भी धज्जियां उड़ गई। वह प्राणों से हाथ धो बैठा।
महिषासुर के सेनापति उससे महा पराक्रमी चिक्षूर के मारे जाने पर देवताओं को पीड़ा देने वाला चमार हाथी पर चढ़कर आया उसने भी देवी के ऊपर शक्ति का प्रहार किया किंतु जगदंबा ने उसे अपने हुंकार से ही आहत एवं निष्प्रभ करके तत्काल पृथ्वी पर गिरा दिया।
मां चंद्रघंटा की प्रार्थना,
ही करुणामाई जग जननी स्नेहमयी एवं आनंद देने वाली मां। आपकी सदा जय हो। हे जगदंबे! पंख हीन पक्षी और भूख से बिलबिला ते बच्चे जिस प्रकार अपनी मां की प्रतीक्षा करते हैं। उसी प्रकार मैं भी आपकी दया की प्रतीक्षा कर रहा हूं। हे अमृतमयी मां ! आप शीघ्र अति शीघ्र मुझ पर कृपा करें। मुझे ऐसी बुद्धि प्रदान करें जिससे मैं आपका हर समय हर सांस में आपका नाम जपता रहूं।