Janmashtami 2022, भगवान श्री कृष्ण के इन बातों का रखें ध्यान ,जीवन खुशियों से भर जाएगा।

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हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार श्री कृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है। श्री कृष्ण बाल्यावस्था में जिस तरह का काम किया उससे यही पता लगता है कि वह कोई साधारण बालक नहीं थे बल्कि विष्णु का अवतार ही थे। बाल्यावस्था में राक्षसी पूतना का वध करना काली नाग का वध करना यह कोई सामान्य काम नहीं था। इन कामों को कोई साधारण बालक नहीं कर सकता था इसलिए श्री कृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है। श्री कृष्ण ने कुछ ऐसी बातें बताई जिसे अगर हम जीवन में अमल करते हैं तो खुशियां ही खुशियां मिलेगी। श्री कृष्ण के हर लीला में उपदेश छुपा हुआ रहता था जैसे गोपियों के वस्त्र को छुपाना, हर घर में माखन चोरी करना यह उनका एक के उपदेश ही था।
श्री कृष्ण ने कुछ ऐसी बातें बताई जिसे अपनाकर मनुष्य जीवन में खुशियां ही खुशियां पा सकता है।
मुसीबत के समय किसी को साथ दें।
विप्र सुदामा हो या फिर उनके सखा पांडू, सबको उन्होंने मुश्किल वक्त में साथ दिया। पांडव को धर्म की रक्षा के लिए अपनों से युद्ध करने को प्रेरित किया था। क्योंकि कृष्ण के अनुसार अधर्म पर चलने वाला कोई अपना नहीं होता इसलिए अर्जुन को अपने विराट स्वरूप दिखाकर यह बताया कि धर्म की रक्षा के लिए तुम युद्ध करो और यह ना देखो कि इसमें कोई मेरा अपना है। कृष्ण महाभारत के युद्ध में अर्जुन का सारथी बनकर इसे धार धार में युद्ध में सांप दिया था।
दोस्ती में हैसियत ना देखें।
श्री कृष्ण और सुदामा बाल सखा थे। वह दोनों एक ही गुरु के पास पढ़ा करते थे। समय बिता और कुछ दिनों के बाद श्री कृष्ण द्वारका के राजा बने। सुदामा की स्थिति ऐसी थी यानी दरिद्रता आ गया था। खाने खाने को तरसना यह उनकी दरिद्रता को प्रदर्शित करता था। जब सुदामा के बीवी को यह पता चला कि उनका बाल सखा श्री कृष्ण द्वारका के राजा हैं तो वह सुदामा को उनके पास सहायता के लिए जाने को कहीं। सुदामा ना चाहते हुए भी श्री कृष्ण के पास जाते हैं और श्री कृष्ण राजा होने के बावजूद भी सुदामा के मदद करते हैं। इनकी दोस्ती सदा के लिए अमर हो गई। आज भी लोग श्री कृष्ण और सुदामा के दोस्ती के बारे में कहा करते हैं।
किसी भी मनुष्य को सही राह पर चलने का सलाह दें।
जब महाभारत में युद्ध हो रहा था तो अर्जुन के मन में यह शंका हो गई कि मैं अपने ही रिश्तेदारों से कैसे यूज करूं। तब श्री कृष्ण ने उन्हें विराट रूप दिखाकर संदेश दिया और कहा कि गलत रास्ते पर चलने वाला कोई अपना नहीं होता। अर्जुन को मोह और माया से मुक्त करा कर उन्हें युद्ध करने के लिए प्रेरित किया। यह युद्ध कोई साधारण युद्ध नहीं था धर्म और अधर्म की लड़ाई थी। अर्जुन से गांधी उठाया और अधर्म को पराजित कर धर्म का विजय पताका फहराई।
शांति का पाठ,
महाभारत युद्ध में कृष्ण धर्म के पक्ष में थे इसलिए उन्होंने पांडवों का साथ दिया क्योंकि वह धर्म के पक्षधर थे। श्री कृष्ण युद्ध को रोकना चाहते थे क्योंकि इस युद्ध में अनगिनत निर्दोष व्यक्तियों का भी वध होना जरूरी था। इसलिए श्री कृष्ण ने पांडवों के तरफ से शांति दूत बनकर गौरव के पास गए थे। हालांकि दुर्योधन इनकी बातों को नहीं माना क्योंकि वह एक अहंकारी व्यक्ति था। इस तरह श्री कृष्ण शांति दूत बनकर यह साबित कर दिया कि हमने युद्ध को रोकना चाहा लेकिन आधार में पक्ष ने नहीं माना फिर युद्ध होना जरूरी हो गया। इस प्रकार युद्ध हुआ और धर्म की विजय हुई।
प्रेम आध्यात्मिक है।
श्री कृष्ण ने राधा से प्रेम करते थे लेकिन कभी विवाह नहीं किया। उन्होंने यह संदेश दिया कि प्रेम अध्यात्मिक यानी दिल से होता है शरीर से नहीं, इसलिए आज भी श्री कृष्ण और राधा का नाम एक साथ लिया जाता है क्योंकि उनका प्रेम जो था आध्यात्मिक था। उनके प्रेम का शरीर से कोई लेना-देना नहीं था। श्री कृष्ण प्रेम को आध्यात्मिक बनाया और संदेश दिया की प्रेम शरीर से नहीं होता है दिल से होता है।
मैं इसी के साथ यह लेख समाप्त करता हूं जय श्री कृष्ण,
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