गीतकार शैलेंद्र की जीवनी
आज मैं एक ऐसे फनकार के बारे में बताने जा रहा हूं जो भारतीय सिनेमा पर अपनी अमिट छाप छोड़ गए एक ऐसा एक ऐसा कोहिनूर जिसके चले जाने के बाद लोगों ने पहचाना। जी हां मैं गीतकार शैलेंद्र की जीवनी बताने जा रहा हूं। शैलेंद्र एक ऐसा गीतकार थे जिनके जैसा ना कोई पहले था और ना ही कोई होगा। शैलेंद्र साहब की कलम से असली दर्द तथा रोमांटिक दोनों तरह की गीते उनके हृदय से निकलती थी। शैलेंद्र ने अपनी कैरियर में लगभग 800 से ज्यादा गीत लिखा और हिंदी सिनेमा मैं अपनी अमित छाप लोगों के दिलों में छोड़ गए।
शैलेंद्र की जीवन परिचय
शैलेंद्र साहब का जन्म 30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी में हुआ था। उनका असली नाम शंकर दास केसरीलाल था। शंकर दास का पैतृक गांव बिहार के धरमपुर में था। उनके पिता गरीबी के चलते बिहार छोड़ कर के रावलपिंडी जा पहुंचे। रावलपिंडी में ही शंकर दास उर्फ शैलेंद्र का जन्म हुआ। जिस वक्त शैलेंद्र जी का जन्म हुआ उनके पिता पूरे शहर में मिठाइयां बट वाई। लेकिन समय का क्या पता कब कौन सी स्थिति आ जाएगी हालात ऐसी आई की उनके पिता को रावलपिंडी छोड़ना पड़ा और उत्तर प्रदेश के मथुरा में आ बसे। मथुरा में उनका भाई रेलवे में नौकरी करता था। शैलेंद्र की शुरुआती पढ़ाई लिखाई मथुरा से सरकारी स्कूल से हुई। शैलेंद्र पढ़ने में बहुत अब्बल थे उन्होंने इंटर के परीक्षा में पूरे उत्तर प्रदेश में तीसरा स्थान प्राप्त किया था। इंटर की पढ़ाई पूर्ण करने के बाद 1947 में शैलेंद्र नौकरी की तलाश में मुंबई चले गए। जहां उनको रेलवे में एक इंजीनियरिंग में नौकरी मिली। शैलेंद्र ने इंजीनियरिंग वर्कशॉप में वेल्डिंग का काम करते थे। कभी ह्रदय शैलेंद्र समाज में फैले अमीर गरीब ऊंच-नीच के भेदभाव के मध्य नजर इन परिस्थितियों को कलम की जुबान से कहने लगे थे।
शैलेंद्र की फिल्मी कैरियर
उनके द्वारा रचित नारा; हर जोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है; 10 को से मजदूरों के हर संघर्ष में गूंजता सुनाई देता है। शैलेंद्र की फिल्मी कैरियर के पीछे एक छोटी सी कहानी है। 1948 में राज कपूर ने एक कवि सम्मेलन में शैलेंद्र की जुबान से उनकी कविता सुनी; जलता है पंजाब और उन से इतने प्रभावित हुए कि अपनी फिल्म गाना लिखने का आगरा किया, इसकी एवज में राज कपूर साहब ने उन्हें ₹500 देने का वादा किया लेकिन इस ऑफर को शैलेंद्र साहब ने यह कह कर ठुकरा दिया की मैं अपने कविताओं का व्यापार नहीं करना चाहता। लेकिन कहा जाता है कि समय और ज्वार का क्या पता कब आ जाए। कुछ समय बाद शैलेंद्र की मां बीमार पड़ गई। पैसे की जरूरत आन पड़ी तो वह राज कपूर के दर पर पहुंचे। राज कपूर ने उसी ₹500 के लिफाफा को संभाल कर रखा था। जब शैलेंद्र राज कपूर साहब के पास पहुंचे तो राज कपूर साहब ने वही ₹500 का लिफाफा निकाला और शैलेंद्र को थमा दीया। शैलेंद्र साहब कभी के साथ-साथ स्वाभिमानी भी थे उन्होंने मुफ्त में पैसा नहीं लेना चाहा और कहा कि मैं आपके फिल्म के लिए गीत जरूर लिखूंगा और उन्होंने दो गीत लिखा और ₹500 लिया। उसी समय राज कपूर की फिल्में बरसात बन रही थी। इसी बरसात फिल्में शैलेंद्र ने दो गीत लिखा गीत गीत का बोल है
हमसे मिले तुम साजन तुमसे मिले हम बरसात में
दूसरे गीत का बोल है_पतली कमर है तिरछी नजर है, इस तरह से शैलेंद्र का फिल्मी गीतों का सफर शुरू हुआ जो जीवन भर उनके साथ चलता रहा।
फिल्म अनाड़ी में उनका लिखा गीत
सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी सच है दुनियावालों के हम हैं अनाड़ी, यह अनमोल हीरा 1966 में हमारे फिल्मी जगत को छोड़कर सदा के लिए परलोक सिधार गए और अपनी अमिट छाप लाखों दिलों मैं छोड़ गए
निम्न जातियों की उपेक्षा
1970 के दशक में और उसके पहले निम्न जाति को उपेक्षा के दृष्टि से देखा जाता था। दूसरे शब्दों में कहूं तो अति पिछड़ी जाति के लोग से उच्च जाति के लोग घृणा करते थे। इसी तरह की बात गीतकार शैलेंद्र के साथ भी हुआ है। जब उनका पुत्र शायरी शैलेंद्र ने उनकी रची गई कविताओं का प्रकाशन कराने प्रकाशन में गया तब तरह-तरह की विवादे उत्पन्न हुई। क्योंकि गीतकार शैलेंद्र एक निम्न जाति के थे। शैलेंद्र जाति से हरिजन या चमार से संबंध रखते थे।
आज के तारीख में ऐसा बिल्कुल नहीं है। आज ऊंच-नच
छुआछूत की भावना बहुत कम हो गई है। आज लोग गुण देखते हैं ना की जाति जब से बिहार में लालू यादव तथा उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव का शासन हुआ सबसे यह प्रथा लगभग समाप्ति के कगार पर है।